कमजोर होती लड़ाई-आशीष Kr. उमराव "पटेल", कैरियर & एकेडेमिक मेंटोर, स्पीकर, मोटीवेटर

कमजोर होती लड़ाई!
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यह बेहद चिंताजनक है कि अब देश में कोरोना संक्रमण के मामले फिर तेजी से बढ़ रहे हैं। बड़ी संख्या में स्वास्थ्य व पुलिसकर्मियों का संक्रमित होना भी चिंता बढ़ा रहा है। एक ऐसे समय जब यह माना जा रहा है कि भारत कोरोना के कहर पर एक बड़ी हद तक लगाम लगा पाने में सक्षम है, तब बीते तीन-चार दिनों से हर दिन तीन हजार से अधिक संक्रमण के नए मामले मिलना चिंताजनक है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि देखते ही देखते देश में कोरोना मरीजों की संख्या 50 हजार के आंकड़े को पार कर गई। यह ठीक है कि कोरोना संक्रमण पर लगाम लगाने की रणनीति पर नए सिरे से विचार किया जा रहा है, लेकिन बात तो तब बनेगी जब बदली हुई रणनीति कारगर भी साबित होगी।


बदली रणनीति में उन कारणों का निवारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए, जिनके चलते कोरोना संक्रमण पर लगाम नहीं लग पा रही है। नि:संदेह केवल दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात के हालात पर ही विशेष ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि तमिलनाडु और हरियाणा में भी कोरोना संक्रमण के यकायक बढ़े मामले चिंता पैदा कर रहे हैैं। इसके अलावा चिंता का एक अन्य विषय यह भी है कि पश्चिम बंगाल की वास्तविक स्थिति पता नहीं चल पा रही है। इसी तरह यह भी शुभ संकेत नहीं कि कोरोना मरीजों की मौतों का ग्राफ बढ़ रहा है। यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि कोरोना के कहर का सामना करने के मामले में केंद्र और राज्य सरकारें न केवल मिलकर काम करें, बल्कि आपसी तालमेल और बढ़ाएं।


यह ठीक नहीं कि पश्चिम बंगाल सरीखे राज्य केंद्रीय टीमों का सहयोग करने में आनाकानी कर रहे हैैं। कोरोना का कहर एक राष्ट्रीय आपदा है और उससे मिलकर ही लड़ा जाना चाहिए। केंद्र और राज्यों के बीच हर स्तर पर बेहतर तालमेल तो होना ही चाहिए, उन्हें इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि बीते कुछ समय से संक्रमण या तो कोरोना मरीजों वाले इलाकों से फैल रहा है या फिर अस्पतालों से। यह ठीक नहीं कि एक बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मी संक्रमण का शिकार बन रहे हैैं। इसी तरह वे पुलिस कर्मी भी संक्रमित हो रहे हैैं जो संक्रमण वाले इलाकों में अपनी ड्यूटी दे रहे हैैं। डॉक्टरों एवं अन्य मेडिकल स्टॉफ के साथ सफाई कर्मी और पुलिस कर्मी कोरोना के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई के योद्धा हैं। इन सबको संक्रमण से बचाने के विशेष उपाय किए जाने चाहिए।


ध्यान रहे कि जब किसी लड़ाई के मोर्चे पर डटे योद्धा प्रभावित होते हैैं तो न केवल लड़ाई कमजोर होती है, बल्कि लोगों के मनोबल पर भी विपरीत असर पड़ता है। चूंकि यह वह लड़ाई है जिसे जीतना ही है, इसलिए कहीं कोई कसर नहीं उठा रखी जानी चाहिए और हर कमजोर कड़ी को जल्द से जल्द मजबूत किया जाना चाहिए। इस स्तर तक आकर भारत की लड़ाई कमजोर नहीं पड़ सकती।
आशीष Kr. उमराव "पटेल", कैरियर & एकेडेमिक मेंटोर, स्पीकर, मोटीवेटर, निदेशक- गुरु द्रोणाचार्य (IIT-JEE, NEET & NDA इंस्टिट्यूट), फ़ोन & व्हाट्सप्प-8650030001, like, follow / subscribe me on-facebook, instagram, twitter, linkedin & youtube.