*मुफ्त खोरी देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा*

*मुफ्त खोरी देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा*प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढाने वाले अधिकाश अभिभावकों ने मन बनाया है कि जब बच्चे स्कूल में पढेंगे तो स्कूल की फीस ना देने का प्रश्न ही नहीं उठता। कुछ राजनैतिक व्यक्ति ऐसे हैं जो अभिभावकों को फीस ना देने के लिये उकसा रहे हैं। अभिभावक राजनैतिक लोगों के बहकावे में नहीं आ रहें हैं और अपने अपने स्कूल की फीस जमा करा रहे हैं। अभिभावक समझ रहा है कि अब सबके सामने जिंदा रहने का सवाल है। स्कूल प्रबंधन के सामने टीचर, ड्राइवर, चपरासी, अकाउंटेंट, कम्प्यूटर ऑपरेटर मिलाकर 20 से 100 के स्टाफ की रोजी-रोटी का प्रश्न मुंह बाये खडा है। कर्मचारियो को वेतन नहीं मिलेगा तो वे स्कूल छोड़ कर चले जायेंगे ऐसे में छात्र अपने शिक्षण से वंचित रह जायेंगे। इन स्कूलों में कई हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है। उनमे से कई परिवारों को 3 माह से वेतन नहीं मिला। हर स्कूल औसतन 2 से 10 लाख रुपये वेतन पर खर्च करता है। ज्यादातर स्कूलों में बसें लोन पर हैं। लेकिन किश्तों में कोई माफी नहीं है। बिजली बिल माफ नहीं हैं। और कई टैक्स, जो पूरे साल के हिसाब से लगते हैं। ऐसे में उनकी परेशानी अनदेखा नहीं किया जा सकता। दूसरी बात, लॉक डाउन में ऐसा कोई वर्ग नहीं है, जो मुफ्त सेवा दे रहा हो। क्या डॉक्टर मुफ्त दवाई दे रहे हैं? क्या मिस्त्री मुफ्त में काम कर रहे हैं?क्या सरकारी कर्मचारी तनख्वाह नहीं ले रहे? क्या बैंकों ने ब्याज या लोन माफ किया? क्या जमींदारों ने अपनी फसल गरीबों को बांट दी? कोई दुकानदार 51 रुपये का रिचार्ज 50 में भी करने को तैयार नहीं है। मेडिकल, मोबाइल, किराना, फर्नीचर, दर्जी, गारमेंट कहीं कुछ मुफ्त नहीं है। कुछ भी सस्ता नहीं है। सरकार ने मास्क तक मुफ्त नहीं दिए। फिर, हम स्कूलों की फीस माफी क्यों? निजी स्कूलों में बड़े जमींदार, जज, डॉक्टर, वकील, सरकारी कर्मचारी, आढ़ती, बिजनेसमैन, बैंक मैनेजर भी तो अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। वो लॉक डाउन का हवाला क्यों दे रहे हैं। कई प्रदेशों की हाई कोर्ट ने फीस ना देने वाली याचिकाओं को निरस्त कर दिया है। अभिभावकों को हर माह फीस अवश्य देनी होगी। जो लोग फीस देने में असमर्थ हैं, उचित कारण देते हुए स्कूल मैनेजमेंट से बात करनी चाहिए। हम डबल सोचते हैं। बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजा तो इज्जत घट जाएगी। पढ़ाना प्राइवेट में है, लेकिन कोई फीस ना मांगें। यह विवाद सिर्फ स्कूलों के साथ नहीं है। बल्कि मुफ्तखोरी राष्ट्रीय समस्या है। हम ट्रेनों और बसों में टिकट नहीं लेना चाहते। कहीं सर्कस लग जाये तो दोस्त ढूंढते हैं, जो पास दिलवा दे। लाखों अमीरों ने फर्जी राशन कार्ड बना रखे हैं। जियो की मुफ्त सिम के लिए लोग हफ्ताभर लाइन में लगे रहे। 4G सिम चलाने के लिए 3G हैंडसेट कबाड़ में बेचने को राजी हो गए। मोबाइल डाटा बेशक रोज महंगा हो जाए, लेकिन टिक टॉक चलेगा। लेकिन हम एजुकेशन को फालतू का खर्चा मानते हैं। इसलिए देश शिक्षा में आगे नहीं बढ़ पाया। मेरी अंतरात्मा कहती है कि टीचर हमारे बच्चों के लिए सालों से मेहनत करते आए हैं। उनका मेहनताना जरूर देना चाहिये। चाहे थोड़ा थोड़ा करके दें। स्कूल संचालकों को भी लालच त्यागने की जरूरत है। इस मुश्किल हालात में उन्हें "नो प्रॉफिट नो लॉस" पर काम करना चाहिए। अगर हमें लगता है कि प्राइवेट स्कूल लूटेरे हैं तो हमें उन स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना ही नहीं चाहिए। क्योंकि कोई "लुटेरा बदमाश" आपके बच्चे को सफल इंसान नहीं बना सकता। *इसलिए सोच बदले इरादा नहीं*