तड़पने लगतें हैं एहसास जब गज़ल नहीं होती। अतुल पटेल की कलम से

 


तड़पने लगतें हैं एहसास जब गज़ल नहीं होती। 
सुलगने लगती है एक प्यास जब गज़ल नहीं होती।। 


बिखरनें लगती है तब आस जब गज़ल नहीं होती ।
महकनें लगती है एक यास जब गज़ल नहीं होती।।


बहुत  ज़रूरी  भी होते  हैं काम  दुनियां  के।।
मगर  लगतें हैं वे बकवास जब गज़ल नहीं होती।। 


हमारे पास अगर दुनिया भर की इशरत हो ।
जुदा सा रहता है कुछ खास जब गज़ल नहीं होती।। 


हमारे फन को ''ज़मन ''खेल तुम समझते हो ।
उलझनें लगती है जी साँस जब गज़ल नहीं होती ।।            अतुल पटेल 
      (M. Sc Mathematics)