कुछ ही लोगों को वरदान सिद्ध हुई है मनरेगा:हरिप्रताप सिंह राठोड

 बदायूँ| देशभर में श्रमिकों के पलायन ने उठाए मनरेगा की प्रासन्गिकता पर सवाल। वर्ष में सौ दिन रोजगार देने की गारंटी वाली योजना के कर्ताधर्ता सौ दिन रोजगार प्राप्त करने वालों की सूची सार्वजनिक करने में है असमर्थ। राहत पैकेज में मनरेगा की वजाय सहकारी समितियों को सुदृढ़ करने की ओर ध्यान देने से होता समस्या का समाधान। कुछ ही लोगों को वरदान सिद्ध हुई है मनरेगा। वर्तमान में सम्पूर्ण देश श्रमिकों के पलायन की समस्या से जूझ रहा है। कृषि प्रधान देश में श्रमिकों की संख्या कृषकों से ज्यादा हो गई है।लघु एवं अतिलघु कृषक श्रमिक बनते जा रहे हैं। श्रमिकों का पलायन रोक पाने के स्थायी उपाय भी नहीं किए जा रहे हैं। उद्योगपतियों को महत्व दिया जा रहा है, श्रमिकों की उपेक्षा की जा रही है।उद्योग की स्थापना में सरकार श्रमिकों से लेकर कृषकों तक के हितों की बलि चढा रही है।उद्योग की स्थापना में निवेश के स्थान पर रोजगार पर ध्यान देना आवश्यक है। उद्योगों की स्थापना का श्रेय सरकार लेती है तथा महिमा मंडन भी होता है। किन्तु उद्योगों की स्थापना से कितने हाथों को रोजगार मिला,यह कभी नहीं बताया गया और इस प्रश्न का उत्तर देने से बचते हुए देखा गया है। उदाहरण के लिए जनपद बदायूं में दातागंज तहसील में सोलर प्लांट की स्थापना हुई, नौकरी का झांसा देकर कृषकों की जमीनें औने पौने दामों में हथिया ली गई, सरकारी जमीन पर भी अवैध कब्जा कर लिया गया, अनुसूचित जाति के किसानों की जमीन बिना अनुमति के ले ली गई। शासन प्रशासन द्वारा इसे एक बड़ी उपलब्धि बताया गया।इस उद्योग की स्थापना से पूर्व उद्योग विभाग द्वारा दी गई आख्या में स्थानीय स्तर पर बड़ी संख्या में रोजगार मिलने की बात कही गई किन्तु जितने लोगों की जमीन चली गई उतने लोगों को भी रोजगार नहीं मिला। आजकल इसी तरह के उद्योगों की स्थापना पर विशेष बल दिया जा रहा है। कृषक से बनते जा रहे श्रमिकों का पलायन रोकने हेतु स्थानीय स्तर पर ही उन्हें रोजगार देने के उपाय करने होंगे।लघु और अतिलघु किसान अपनी थोड़ी सी भूमि मेंं सब्जियां पैदा करके तथा पशुपालन करके अपने परिवार की आवश्यकता पूर्ति कर सकते हैं। इसके लिए न्याय पंचायत स्तर पर उप मन्डी समितियों तथा ब्लाक स्तर पर मन्डी समितियों की स्थापना हो ताकि वे अपनी उपज का उचित मूल्य पा सकें।उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ाने हेतु सहकारी समितियों की ग्राम स्तर पर स्थापना हो। सहकारी समितियां प्रदेश व देश के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। किन्तु सत्ताधारी दल इस ओर कभी गम्भीर नहीं रहें हैं। सत्ताधारी दलो द्वारा सदैव प्रारम्भिक सहकारी समितियों को अपने कार्यकर्त्ताओं को समायोजित करने तथा शीर्ष समितियों को टिकट से वन्चित,हारे हुए, बड़े पदाधिकारियों अथवा बड़े नेताओं के परिजनों को समायोजित करने हेतु उपयोग करके अक्षम हाथों में सहकारिता को सौंप दिया गया। परिणाम स्वरूप सहकारी समितियां दुर्बल होती चली गई।अति सम्पन्न सहकारी समितियों की परिसम्पतिया तक औने पौने दामों में नीलाम हो गई। यदि अब भी सरकार सहकारिता की ओर ईमानदारी और गम्भीरता से ध्यान दे तो स्थानीय स्तर पर रोजगार का बड़ा कारण सहकारी समितियां बन सकती है। इसके लिए सर्वप्रथम सहकारी समिति अधिनियम में संशोधन करके उसे जटिलताओं और उलझनों से मुक्त करने के साथ ही सहकारी समितियों को राजनैतिक नेतृत्व से मुक्ति दिलाकर योग्य व समर्थ हाथों में सहकारी समितियों को सौंपना होगा। इसके लिए प्रदेश सरकार किसी उत्कृष्ट प्रबन्धन संस्थान को नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त कर सभी शीर्ष सहकारी समितियों में एम बी ए योग्यता धारक महाप्रबंधकों की नियुक्ति करे। सहकारी समितियों का पूरी तरह डिजिटाइजेशन हो।इसकी शुरुआत दुग्ध सहकारी समितियों, शाकभाजी सहकारी समितियों के संचालन के साथ ही लघु और अतिलघु कृषकों की कृषि भूमि मेंं कृषि कार्य हेतु सहकारी समितियों के गठन से हो सकती है। इस विषय पर सरकारें गम्भीरता पूर्वक विचार करें तथा विफल हो चुकी तथा उद्देश्य से पूरी तरह भटक चुकी मनरेगा जैसी योजनाओं को बन्द करें और मनरेगा का पूरा बजट सहकारी समितियों को सुदृढ़ करने हेतु दे ताकि स्थानीय स्तर पर ही रोजगार उपलब्ध हो सके तथा पलायन पूरी तरह रूक सके और भविष्य में श्रमिकों के सामने वर्तमान परिस्थिति की पुनरावृत्ति न हो। हरि प्रताप सिंह राठोड़