आज 5 मई को विश्व अस्थमा दिवस के नाम से जाना जाता है ।
अस्थमा एक श्वास रोग है जिस प्रकार दौड़ने भागने से लगातार और जल्दी-जल्दी सांस आता है यदि उसी तरह आराम से बैठे रहने पर भी सांस आए तो उसे दमा रोग अथवा श्वास रोग के नाम से जाना जाता है।
इस रोग के उत्पन्न होने के निम्नांकित कारण होते हैं-
दाह उत्पन्न करने वाले, देर से पचने वाले, दस्त को रोकने वाले, रुखे और रस वाहिनी शिराओं को रोककर भारीपन करने वाले पदार्थों के सेवन करने से ।
शीतल जल पीने और शीतल अन्न का सेवन करने से ।
धूल तथा धूँए के मुख और नाक में जाने से ।
अत्यंत हवा लगने से।
अत्यंत मेहनत के काम करने या भारी बोझ उठाने से ।
बहुत पैदल चलने से ।
मल मूत्र आदि के बेग को रोकने से।
उपवास आदि करने से हिचकी,श्वास और खांसी रोग पैदा होने से ।
विशेष- हिचकी रोग और श्वास रोग के एक ही कारण होते हैं अर्थात जिन कारणों से हिचकी रोग उत्पन्न होता है प्रायःउन्हीं बहुत से कारणों से स्वास रोग भी होता है।
खाँसी के बढ़ने से, पहले कहे हुए कड़वे और गरम प्रभृति दोषों को कुपित करने वाले पदार्थों के खाने से,आमातिसार ,छर्दि रोग या कै होने से,जहर-खाने से ,पांडु रोग या पीलिया से, बुखार से,धूल और धुँआ के नाक और मुंह में जाने से ,हवा लगने से ,गर्म स्थान में चोट लगने से ,और अत्यंत शीतल जल पीने से श्वास रोग होता है ।
श्वास रोग के भेद -
श्वास रोग पांच प्रकार का होता है-
(1)महा श्वास, (2)उध् र्व श्वास,
(3)छिन्नश्वास,(4) तमक श्वास, (5)छुद्रश्वास।
"सुश्रुत संहिता"में लिखा है प्राणवायु अपनी प्रकृति के विरुद्ध होकर कफ में मिलकर और उधर्वगामी होकर श्वास रोग पैदा करती हैं।
श्वास रोग के पूर्वरूप निम्नांकित है-
(1) हृदय में पीड़ा ,
(2)शूल,
(3)अफारा ,
(4)मुख का स्वाद खराब होना,
और
(5)कनपटियों में तोड़ने की जैसी पीड़ा होना।
महाश्वास के लक्षण-जिसे महाश्वास होता है उसकी प्राणवायु आवाज करती हुई ऊपर को चढ़ती है।
प्राणवायु को ऊपर की ओर चढ़ने से रोगी को अत्यधिक कष्ट होता है ।
जिस प्रकार भागने के बाद रुका हुआ अथवा कुछ दिनों से मैथुन कर्म ना करने वाला सांँड सांँस लेता है उसी प्रकार महाश्वास का रोगी सांँस लेता है।
महाश्वास का रोगी अपने पढे़ हुए शास्त्रों को भूल जाता है। रोगी की आंखों में भ्रम हो जाता है। उसके नेत्र चंचल अथवा फटे से हो जाते हैं ।मल-मूत्र रुक जाते हैं तथा उसकी जीभ तुतला जाती है ।
यदि रोगी बोलता है तो बहुत ही मन्दी आवाज निकलती है किंतु श्वास की आवाज दूर से ही सुनाई पड़ती है।
जिस रोगी में यह सब लक्षण मिलते हैं उसे महाश्वास का रोगी कहते हैं ।ऐसे लक्षणों वाला रोगी मर भी जाता है।
"सुश्रुत संहिता" में लिखा है जब मनुष्य बेहोश हो, पसलियो में दर्द हो कण्ठ या गला सूखे,श्वांस में खर्राटे की आवाज ज्यादा आए, नेत्रों में सूजन अथवा सुर्खी हो,तथा सांँस लेते समय हृदय ढीला हो जाए अथवा फैल या सिकुड जाए तब समझना चाहिए कि महाश्वास है।
बाग्भट्ट ने महा स्वास रोग में कान, कनपटी और सिर में दर्द होना ज्यादा लिखा है ।
उध् र्व श्वास के लक्षण -जिसे उध् र्व श्वास होता है उसका श्वास बहुत ऊंचा चढ़ता है।
कभी नीचे नहीं आता है। उसके शरीर के सब छेद और मुँह कफ से घिर जाते हैं ।वायु को स्वतंत्र रूप से घूमने को राह नहीं मिलती इसलिए वह कुपित होकर घोर पीड़ा करती है ।
उध् र्व श्वास के रोगी की नजर सदैव ऊपर की तरफ रहती है। वह चारों ओर बुरी तरह से देखता है, बेहोश हो जाता है ,वेदना से विकल होता है, मुंह सूखता है ,तथा बेचैनी से छटपटाता है।उध् र्व श्वास मे रोगी नीचे का श्वास नहीं ले पाता सब तरह के श्वांसो में यह श्वास बहुत ऊंचा चढ़ता है।कभी नीचे नही आता। यही इसकी बिशेषता है।
छिन्न श्वास के लक्षण- जिसे छिन्न श्वास होता है वह अपनी पूरी ताकत से रह-रहकर श्वास लेता है।
छिन्न श्वास वाले रोगी के हृदय,छाती और सिर में दर्द होता है, मानो कोई छेदे डालता है।वह समय (जब साँस लेना हो तब)पर सांँस नहीं ले सकता है पेट फूलने,पसीने आने, बेहोशी होने और मूत्राशय में जलन होने से रोगी बेहद दुखी रहता है ।
उसके नेत्र जल से भरे रहते हैं।
शरीर अत्यन्त क्षीण हो जाता है।
चित्त मे उद्वेग रहता है। वह वृथा बकवास करता है और निरंतर हाँफता रहता है।
उसका मुंख सूखता है।शरीर का रंग बिगड़ अथवा बदल जाता है।
तथा एक आंख लाल हो जाती है।
रोगी तत्काल मर जाता है ।
तमक श्वास के लक्षण -
जब वायु अपनी राह छोड़कर गलत रास्तों से नसों में घुसती है तो वह गर्दन और सिर को जकड़ कर ,कफ को बढ़ाकर, नाक में पीनस या जुकाम कण्ठ में घर-घर शब्द और हृदय को पीड़ित करने वाला तीव्र श्वास रोग उत्पन्न करती है इसी को तमक श्वास कहते हैं ।
जिसे तमक श्वाह होता है वह अपने को घोर अंधकार में पड़ा हुआ देखता है एवं त्रस्त पाता है।
श्वास के-बेग से चेष्टा रहित हो जाता है तथा खांसी आने से बार-बार बेहोस हो जाता है ।
तब उसके गले का कफ निकलने लगता है तब उसे महाकष्ट होता है।
लेकिन जब कफ निकल जाता है तब थोड़ी देर के लिए उसे चैन आ जाता है।
तमक श्वास से ग्रस्त रोगी के गले में दर्द होता है ,इसलिए उसे बोलने में कष्ट होता है ।जब रोगी सोता है या लेटता है तब वायु के कारण से - पसलियों मे घोर पीड़ा होती है इसलिए तुरंत उठ कर बैठ जाने से आराम मिलता है।
यही कारण है कि तमक श्वास के रोगी रात रात भर तकिया या दिवार के सहारे माथा टिकाकर बैठे रहते हैं।
क्षुद्र श्वास के लक्षण -यह श्वास रूखेपन और कठिन से पैदा होती है ।यह श्वास वायु को बढ़ाता है किन्तु और श्वासो की तरह रोगी को बहुत दुखीत और पीड़ित रही करता। खाने-पीने में बाधा नहीं डालता और इंद्रियों को पीड़ित नहीं करता ।
यह श्वास रोग साध्य होता है आसानी से आराम हो जाता है।
कमजोर रोगी का तमक श्वास भी असाध्य ही होता है । यूं तो सन्निपात ज्वर और हैजा इत्यादि अनेक रोग प्राणनाशक होते हैं ,किंतु श्वास और हिचकी रोग जैसे जल्दी प्राणनास करते हैं,जितनी अन्य रोग नहीं करते है।
श्वास रोग की चिकित्सा में प्रमुख स्मरणीय बातें-
श्वास का दौरा होते ही रोगी को जिस तरह आराम और सुविधा मालूम हो उसी तरह पलंग पर हवादार कमरे में बैठना चाहिए।
रोगी जितना आराम से सह सके उतने गर्म जल में एक कपड़ा भीगोकर उसे 10-15 मिनट तक रोगी कोई की छाती को सेंकना चाहिए अथवा थोड़ा-सा सेंधा नमक गाय के घी में खूब बारीक पीसकर रोगी की छाती के बीच से गले तक मलना चाहिए ।
रोगी जितना गरम जल सक्ष सके उतने गर्म जल को एक चौड़े और गहरे बर्तन में भरकर उसमें रोगी के दोनों पैर रख दें यह उपाय करने से श्वास का जोर(दौरा) तुरंत घट जाता है !
बीज रहित 10-15 नग मुनक्के कुचलकर 125 ग्राम दूध 125 ग्राम पानी में औटाएँ।
जब पानी जल जाए और दूध शेष रह जाए तब मल व छान कर 4-5 नग कालीमिर्च का चूर्ण और 1तोला मिश्री मिलाकर गरमा-गरम थोडा-थोडा तीन-चार बार मे पिलाना चाहिए ।
अथवा पांच-सात बदामो की सफेद मीगीं पानी में पीसकर कपड़े से छान कर और आग पर खूब औटा कर पिलानी चाहिए या केवल गरम पानी या गरम दूध ही रोगी को सेवन करना चाहिए ।
या
द्राक्षावलेह का सेवन कराना चाहिए ।
अथवा कफाधिक्य युक्त श्वास के दौरे में अदरक का रस तथा शहद 6-6 मासे मिलाकर चटाना चाहिए।
श्वास वाले रोगी को गर्मी के मौसम में पीने और नहाने में शीतल जल तथा जाड़े की ऋतु में गर्म जल का प्रयोग कराएं ।
रोगी को हवादार स्वच्छ मकान में जहां साफ हवा व धूप आती हो वहां रखना चाहिए तथा रोगी के पास भीड़ भाड़ भी नहीं होनी चाहिए यदि रोगी को माफिक हो तो सुबह व शाम को साफ स्वच्छ हवा खिलाने चाहिए ।
उसे अत्यधिक सर्दी व गर्मी दोनों से बचाना परम आवश्यक है ।
श्वास रोगी को अधिक मेहनत करना और नशीले पदार्थों का सेवन आदि से बचना चाहिए ।
स्वास का दौरा शांत होने पर एक-दो दिन तक रोगी को गेहूं का नमकीन दलिया पतली धुली मूंग की दाल और साबूदाना देना चाहिए।
प्रतिदिन ऐसा सादा भोजन देना चाहिए जो जल्दी ही हजम हो जाए ।
पहले भोजन के 6 घंटे बाद दूसरा भोजन देना चाहिए शाम के समय बहुत ही थोड़ा तथा सूरज छिपने से पहले खाना देना चाहिए ।
क्योंकि रात को देर से तथा अधिक मात्रा में खाने से भोजन न पचने के कारण श्वास बढ़ता है ।गेहूं ,मूंग, जौ, गाय का दूध, अंगूर ,केला ,संतरा ,अनार, बदाम ,किसमिस ,परवल ,बैगन तोरई, करेला, और पालक इत्यादि सभी पथ्य हैं इसका सेवन ऋतु के अनुसार बे झिझक करा सकते हैं।व्दारा डॉ0 हरहर शंभू चौधरी एमडी