शीर्षक --लाँकडाउन- एक प्रवासी मजदूर पर आधारित काल्पनिक कहानी है इस कहानी का किसी के भी जीवन से कोई संबंध नहीं है। लेखक- डॉ. लव कुश पटेल

शिर्षक --लाँकडाउन
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एक प्रवासी मजदूर पर आधारित काल्पनिक कहानी है इस कहानी का किसी के भी जीवन से कोई संबंध नहीं है। लेखक- डॉ. लव कुश पटेल



आज फिर भीखममल मुंह झूठा किए बगैर ही काम पर चला गया।


क्या करता घर में नाम मात्र का ही राशन बचा था, बीमार पत्नी और नन्हे छोटू की ओर नजर उठी तो कुछ खाने की हिम्मत ही न हुई।


यह सोचकर  कि दुकान में ही कुछ नाश्ता कर लेंगे घर में जो थोड़ा बहुत है मां बेटे के लिए रहने दो ।
पत्नी भी एनीमिया से पीड़ित थी,
डॉक्टर ने उसे अच्छा और ताजा भोजन की सलाह दी थी ।
खून बढ़ने की टॉनिक भी चल रही थी पर पिछले महिने से  वह भी खत्म था।
 भिखममल  को तसल्ली थी कि पहले से कम पगार में ही सही पर काम मिल गया ।
फिलहाल इसी से काम चलाना होगा यह भी छोड़ दिया तो दो जून की रोटी के लिए भी लाले पड़ जाएंगे ।
बाद की बाद देखी जाएगी 3 महीने बाद आज काम पर जा रहा था।
 भिखममल एक प्रवासी मजदूर था, दिल्ली के एक बड़े किराना दुकान में काम करता था ।अच्छी वेतन मिल रही थी ।
पत्नी-पति पत्नी और बेटा छोटू का तीन लोगों का परिवार किसी तरह सुकून से कट रहा था!
 इसी होली में पत्नी और छोटू के लिए नया कपड़ा आया था ।


जमकर होली खेली और दोस्तों को भी दावत दी थी, घर पर भी मां को कुछ पैसे भेजे थे ।
ऐसे में कुछ ज्यादा ही खर्च हो गए थे ।


सोच रखा था अगले महीने से वेतन से बड़ी बचत करनी होगी क्योंकि वह छोटू को सरकारी नहीं,बल्की  किसी अच्छे निजी विद्यालय में पढ़ाना चाहता था ।
पर किसे पता था अचानक लाँकडाउन हो जाएगा।
 जो थोड़ी बहुत पैसे थे पत्नी की दवा और छोटू के दूध वगैरा में खर्च हो गए ।
पहले तो लगा घर में जितना राशन है लाँकडाउन निकल जाएगा ।
पर दिन बढ़ते गए सेठ अच्छा इंसान था ,सो दुकान बंद होने के बावजूद भी भिखममल की स्वामी भक्ति के कारण जरूरत भर का राशन दे दिया करता था ।
पर अब तो सेठ का भी सहारा ना रहा ।
वह भी अपने गांव वापस लौट गया था।
 वह भी फिर कभी ना लौटने की कसम खाकर ।
मरता क्या न करता सेठ की दुकान दिल्ली दंगों की भेंट चढ़ चुका था ।
भरा-पूरा इलाके का मशहूर दुकान था, इस अजनबी शहर में भिखममल का अब कोई हमदर्द भी ना रहा ।
दो महीने तो सरकारी नुमाइंदे दो वक्त पेट भर खिलाते रहे पर अंतिम के दो सप्ताह जैसे तैसे गुजारा चला ।


पानी भी बड़ी मुश्किल से आधे घंटे चलता है वह भी धार ऐसे ही की दो बाल्टी में ही टै बोल जाता है ।
भला हो मकान मालिक का  कि किराए में छूट दे दी वरना इस बंद में बीमार पत्नी छोटे बच्चे को लेकर कहा जाता ।
लाकडाउन खुलने के बाद लगभग सभी प्रवासी मजदूर अपने गांव चले गए पर ना जाने क्या सोचकर भीखम रुक गया शायद इसलिए कि अपने बेटे को अच्छी शिक्षा देना चाहता था।
 मजदूरों की कमी होने से काम तो मिल गया।
पर वेतन बस पेट पालने भर था।


इससे तो मकान का किराया पत्नी की दवाई और घर के खर्चे ही मुश्किल से चल पाते।
छोटू का दूध भु बंद हो गया।
भीखममल उदास मन से काम पर तो चला गया पर पता नहीं क्यों काम मे मन नहीं लगा पा रहा था।


लाँकडाउन के  साथ साथ स्कूल भी खुल गए थे ।
पत्नी ने रुआंसे मन से होली में लाए नए कपड़े पहना कर स्कूल बैग के साथ एक थाली पकड़ा कर छोटू को और बच्चों के साथ दूसरे मोहल्ला में बने सरकारी स्कूल में भेज दिया।



 छोटू भी हंसता-खेलता और बच्चो के साथ स्कूल चला गया।


स्कूल का पहला दिन था, बच्चे काम आए थे इसलिए मध्यान भोजन के बाद बच्चों की छुट्टी की घोषणा कर दी गई ।
भोजन में कढी चावल  बनी थी ।


छोटू ने कुछ ज्यादा ही ले लिया।
भण्डारिन ने पुछा खा पाओगे इतना,तो छोटू बडे ही मासुमियत से कहने लगा
 सुबह से कुछ नहीं खाया बहुत जोरो की भूख लगी है,पर यह क्या- छोटू ने भोजन का एक निवाला भी नहीं छुआ और पूरी थाली उठाकर जाने लगा पूछने पर घर पर खाऊंगा कह कर आगे बढ़ गया रास्ते में ही वह  दुकान पड़ता था जिसमें उसके पिता ने आज ही काम मे लगे थे ।


छोटू को रास्ते भर रह-रहकर यही ख्याल आता रहा -कि पिताजी कुछ खाए बिना ही काम पर निकले हैं !


छोटू दुकान पर पहुंचा तो दोपहर के खाने का वक्त हो चला था दूर से  ही पिता को पुकारा ।
भिखम  छोटू के हाथ में भोजन की थाली देखकर चकित रह गया ,
कढ़ी चावल घर पर तो कुछ पाव भर आटा और दो-चार आलू  ही थै?


भिठम ने छोटू की ओर देखते हुए हैरानी से पूछा।


छोटू ने जबाब मे अपने पिता से कहा- माँ चार रोटी बनाई थी,और चोखा भी मै एक खा कर स्कूल गया था।
भिखम छोटू से थाली लेते हुए  दुकान के बाहर ही चबूतरे मे बैठ जाता है ,और एक हाथ से अपने आँसू पोछते हुए दूसरे से छोटू को कढी-चावल खिलाने लग जाता है।