प्रवासी- क्या बाहर जाकर इतनी भी कमाई नहीं होती की मुसीबत के समय वह महीने भर भी अपना भरण-पोषण कर सके

प्रवासी- क्या बाहर जाकर इतनी भी कमाई नहीं होती की मुसीबत के समय वह महीने भर भी अपना भरण-पोषण कर सके
 
रोजगार के लिए बाहर राज्यो मे एवं विदेशों मे गए लोगों का सोशल मीडिया में इस तरह से मैसेज देना कि हम यहां भूखे मर रहे हैं हमारे पास खाने की नहीं है यह कहां तक सही है ।


ये वही लोग हैं जो बहुत ज्यादा कमाने के चक्कर में बाहर राज्यों में या विदेशों में गए थे।
 यह लोग कई साल से बाहर ही रह रहे हैं पर सोशल मीडिया में उन लोगों का इस तरह पोस्ट डालना यह दर्शाता है कि बरसों से इन लोगों ने इतना भी नहीं कमाया की महीने भर भी खुद का भरण-पोषण कर सकें ।


ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर ये लोग तो सिर्फ पैसा कमाने के लिए ही बाहर गए थे पर बरसों रहकर भी इतना ना कमा सके कि महीने भर का भी राशन ला सके ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि ऐसे कौन से रोजगार नहीं थे अपने घर पर ।
क्या इतना भी नहीं कमाया जा सकता था कि खुद का पेट पाल सकें जिसकी वजह से यह लोग प्रवास को स्वीकार किया ।
क्या देश के किसी भी गांव या राज्य में या जिले में इतने संसाधन भी मौजूद नहीं है कि लोग कोई भी छोटा-मोटा काम करके उससे आमदनी कर सकें ,क्या मनरेगा में काम नहीं होता ?
क्या अपने आवासीय क्षेत्र में ऐसे काम नहीं मिलते जो यह लोग बाहर जाकर करते हैं ?
ज्यादातर मजदूर बाहर जाकर किसी चीज की मजदूरी करते हैं या फिर किसी दुकान ,मकान छोटे-मोटे उद्योग में काम करते हैं जो कि आज की तारीख में भारत के हर छोटे-मोटे शहर/ गांव में यह सुविधा उपलब्ध है जहां उद्योग नहीं है वहां हैं प्राकृतिक संपदा हैं!


 मैंने आदिवासियों को जंगलों से पत्ते और दातुन तोड़कर ,जंगल में मिलने वाली शाग-शब्जियाँ तोड़कर बाजारों में बेचकर अपने और अपने घर परिवार का भरण-पोषण करते देखा है !


यह प्रवासी क्या इस लायक भी नहीं थे या फिर बहुत ज्यादा पैसे कमाने के लालच में अपने प्रवास को स्वीकार किया और आज हालत यह है कि 1 महीने के लॉक डाउन मे ही इनकी सारी कमाई चली गई ।
हकीकत तो यह है की ठेका पर काम करने वाले लोगो को अक्सर महीनों तक काम नहीं मिलते है।


कभी साल में 6 महीने तक तो कभी 8 महीने काम चलता है!
 ज्यादातर बारिशों में निर्माण काम करने वाले लोगों को काम की कमी रहती है तो कभी बहुत ज्यादा गर्मी पड़ने पर ठेकेदार इन्हें काम से बैठा देते हैं ।
तब इन लोगों के गुजारा बड़े आराम से चलता है ।


पर जब देश पर विपत्ति आई है देश को इन्हीं जनता को बचाने के लिए लॉकडाउन करना पड़ा ऐसे में इन लोगों का बाहर राज्यों से या विदेशों से रोते गिडगिडाते हुए सोशल मीडिया में पोस्ट करना कहां तक उचित है। हरहर शम्भू चौधरी 
(एम.ए.पत्रकारिता)