"बदायूँ के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज किया जायेगा डॉ. शकील का नाम"

बदायूँ के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा डॉ. शकील का नाम- अवैतनिक रूप से स्वास्थ्य विभाग की कोविडि रेस्पांस टीम में काम कर रहे हैं लगातार ज़रूरत मंदों को बांट रहे है खाना और राशन बदायू। बनावटी और दिखावे भरी इस दुनिया में सच्चे मन से समाजसेवा करने वालों का अकाल है। कम ही सही लेकिन कहीं न कहीं ऐसे लोग मिल ही जाते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत को हर बदायूंवासी डाॅ. शकील अहमद के नाम से जानता है। धर्म, सम्प्रदाय, जातिगत भावनाओं से ऊपर उठकर अपने सामाजिक मिशन को आगे बढ़ाया है। उन्हें समाजसेवा का जज्बा अपने पिता मरहूम रईस अहमद से विरासत में मिला है। शदीद गर्मी के इस मौसम में लोग घरों से बाहर निकलना मुनासिब नहीं समझते। वहीं डाॅ. शकील अहमद अपने ए.सी. रूम को छोड़कर सरकारी सेवा में नहीं होने के बावजूद सरकारी मशीनरी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कोरोना के खिलाफ जंग के योद्धा बनकर अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधीन कोविड-19 रेपिड रेस्पांस टीम के साथ निस्वार्थ भाव से सेवा में लगे हैं। आमतौर पर लोग सरकारी रकम को हासिल करने, हड़पने की कोशिश में रहते हैं। इससे इतर डाॅ. शकील अहमद ने स्वास्थ्य विभाग को साफ तौर पर लिखकर दे दिया है कि वह कोरोना वायरस के खिलाफ मुहिम में निस्वार्थ भाव से सेवा करेंगे। इसके बदले उन्हें विभाग से कोई मानदेय या भत्ता नहीं चाहिए। हालांकि इस काम में उन्हें दुश्वारियों का सामना करना पड़ा। शदीद गर्मी, साथ में रमजान का महीना। कोराना संदिग्ध और संक्रमितों के बीच खाने-पीने का परहेज रखना, उसी दौरान रोजा अफ्तार का वक्त। ऐसे में अक्सर सिर्फ पानी से रोजा खोलना। दिखावे के इस दौर में सच्ची समाजसेवा के इस जज्बे को हमें दिल से सैल्यूट करना चाहिए। इन दिनों डाॅ. शकील अहमद एक साथ तीन तरह से अपना फर्ज निभा रहे हैं। जरूरतमंदों को राशन सामग्री मुहैया करा रहे हैं। निस्वार्थ भाव से स्वास्थ्य विभाग को सेवाएं दे रहे हैं और राजनीतिक कर्तव्यों को भी निभा रहे हैं। आमतौर पर लोग सुरक्षित भविष्य के लिए सरकारी नौकरी तलाश करते हैं। आजीविका के उद्देश्य से डाॅ. शकील अहमद भी स्वास्थ्य विभाग में सेवारत थे। सेवा के दौरान वह अपनी सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा को रफ्तार नहीं दे पा रहे थे। वर्ष 2015 की बात है, अपने वैचारिक, सामाजिक, राजनीतिक दायरे को पाबंदियों से बाहर निकंलने और उन्हें अंजाम देने के मकसद से एक अच्छे खासे वेतन वाली सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उसी समय जिला पंचायत चुनाव लड़ा और पहली कोशिश में ही रिकार्ड वोटों से जीत हासिल की। डाॅ. शकील अहमद की वफादारी, कर्मठता, लगनशीलता, निष्पक्ष सामाजिक विचारधारा का ही सिला है कि वे पिछले 10 सालों से लगातार भारतीय चिकित्सा परिषद के निर्वाचित सदस्य के पद पर आसीन हैं। इस पद पर रहते हुए उन्होंने डाॅक्टर्स की तमाम समस्याओं को शासन के संज्ञान में लाकर उनका निराकण भी कराया है। इसी वजह से उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में उनके फाॅलोअर्स मौजूद हैं। इस लोकप्रियता की वजह से नेशनल इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन (नीमा) के अध्यक्ष, नेशनल यूनानी डाॅक्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन (नुडवा) जैसे बड़े संगठनों ने प्रदेश महासचिव की जिम्मेदारी से नवाजा है। इसके अलावा डाॅ. शकील अहमद मोमिन अंसार वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष, सरसैयद एजूकेशनल सोशल वैलफेयर सोसाइटी के सचिव, संकल्प सामाजिक संगठन के संरक्षक समेत दर्जनों संस्थाओं से जुड़कर सामाजिक उत्थान में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। समाजसेवा और राजनीति को सेवा का जरिया मानने की वजह से छात्र जीवन मे यह जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय नई दिल्ली में छात्र संघ के महासचिव के पद पर निर्वाचित हुए। साल 1992 से 2000 तक दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया, जेएनयू आदि विश्वविद्यालय छात्र संघो के साथ मिलकर छात्र हितों के आंदोलनों का प्रमुख चेहरा रहे।